आग्नेय चट्टान
इसका निर्माण क्रस्ट के नीचे उपस्थित तप्त एवं तरल मैग्मा के ठंडा होने से होता है।
आग्नेय चट्टान रवेदार होते हैं। इसे ‘प्राथमिक चट्टान’ भी कहते हैं, क्योंकि पृथ्वी की उत्पत्ति के पश्चात सर्वप्रथम इनका ही निर्माण हुआ था।
अवसादी व रूपान्तरित चट्टान इसी से निर्मित होते हैं। इनमें परतें नहीं होती तथा जीवावशेष (Fossils) भी इनमें नहीं पाए जाते हैं।
रासायनिक अपक्षय का इन चट्टानों पर प्रभाव कम पड़ता है किन्तु भौतिक व यांत्रिक अपक्षय का प्रभाव अधिक होता है, परिणामस्वरूप इन चट्टानों में विघटन (Disintegration) और वियोजन (Decomposition) होते हैं। क्रस्ट का लगभग 90% भाग आग्नेय चट्टानों से बना है।
स्थिति एवं संरचना के अनुसार आग्नेय चट्टानें दो प्रकार की हैं
(क) अन्तः निर्मित आग्नेय चट्टान (Intrusive igneous rock) :जब मैग्मा सतह से नीचे ही ठंडा होकर ठोस रूप धारण कर ले तो आंतरिक आग्नेय चट्टान का निर्माण होता है। इसके दो उपवर्ग हैं
(a) पातालीय चट्टान (Plutonic Rock ) : इसका निर्माण पृथ्वी के अंदर काफी अधिक गहराई पर होता है। इसका ‘नामकरण ‘प्लूटो’ (यूनानी देवता) के नाम पर किया गया है, जो पाताली देवता माने जाते हैं। अत्यधिक धीमी गति से ठंडा होने के कारण इसके रवे बड़े-बड़े होते हैं। ‘ग्रेनाइट’ चट्टान इसी का उदाहरण
(b) मध्यवर्ती चट्टानें (Hypobyssal Rock) : ज्वालामुखी उद्गार के समय धरातलीय अवरोध के कारण मैग्मा दरारों, छिद्रों एवं नली में ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है। कालान्तर में अपरदन की क्रिया के उपरान्त ये चट्टानें धरातल पर नजर आने लगती हैं। डोलेराइट और मेग्नेटाइट इन चट्टानों के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। इसके मुख्य रूप हैं- लैकोलिथ, फैकोलिथ, लोपोलिथ, बेथोलिथ, सिल, डाइक आदि ।
(ख) बाह्य आग्नेय चट्टान (Extrusive igneous rock) : कभी-कभी मैग्मा भूपर्पटी के ऊपर आ जाता है तो तेजी से ठंडा होकर ठोस रूप धारण कर लेता है और बाह्य चट्टान का निर्माण करता है। इसे ‘ज्वालामुखी चट्टान’ भी कहते हैं। इन चट्टानों के रवे बहुत छोटे होते हैं। बेसाल्ट इसका अच्छा उदाहरण है। इस चट्टान के क्षरण से ही काली मिट्टी का निर्माण होता है, जिसे ‘रेगड़’ (Regur) कहते हैं। रंध्रविहीन ग्लासी मैग्मा के अंतर्गत ऑब्सीडियन, प्यूमिस, परलाइट व पिच स्टोन आते हैं।