कौन जीता
एक चींटी थी। उसे एक बताशा दिखा। बताशा बहुत बड़ा था। वह भागकर बताशे के पास पहुँची। अरे वाह! मुँह में पानी आ गया।
तभी एक दूसरी चींटी वहाँ आ गई। वह बताशा खींचने लगी।
उठाते उठाते दम निकल गया। ओह! कितना भारी है।
पहली चींटी भी बताशा खींचने लगी। दोनों चींटियाँ आपस में झगड़ने लगीं।
पहली चींटी- यह बताशा मेरा है ।
दूसरी चींटी – नही यह मेरा बताशा है।
लड़ते-लड़ते बताशे को धक्का लगा। वह एक गड्ढे में जा गिरा।
गड्ढे में पानी था। बताशा गड्ढे के पानी में घुल गया। दोनों चींटियाँ देखती रह गईं।
दोनो चींटियां एक साथ ओह। यह क्या ??
चींटियों को अपनी गलती पर पछतावा हुआ।
पहली चींटी- काश! हम दोनों न लड़तीं।
दूसरी चींटी- हाँ बहन! दोनों को आधा-आधा बताशा मिल-बाँटकर खाना चाहिए था।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है ?
हमने सीखा- हमें हमेशा मिल-बाँटकर खाना चाहिए।