बोधि वृक्ष का इतिहास (History of Bodhi tree)

बोधि वृक्ष

बोधि वृक्ष
बोधि वृक्ष

बोधि वृक्ष बिहार राज्य के गया  जिले में स्थित है जहां महात्मा बुद्ध की तपस्थली है इस क्षेत्र में बने महबोधि मंदिर परिसर में एक पवित्र पवन पीपल का वृक्ष स्थित है इसी वृक्ष को बोधि वृक्ष कहा जाता है इसी वृक्ष के नीचे बैठकर ईसा से लगभग 531 वर्ष पहले महात्मा बुद्ध को बोध (ज्ञान ) की प्राप्ति हुई थी

    बोधि वृक्ष को कई बार नष्ट करने का प्रयास

पहली बार

इस वृक्ष को काटने का पहला प्रयास सम्राट अशोक की एक वैश्य रानी ने अपने निजी स्वार्थ के लिए किया था उस समय सम्राट अशोक दूसरे देश की यात्रा पर थे।

इन्होंने इस वृक्ष को चोरी से कटवा दिया था लेकिन इनका प्रयास विफल हो गया जब एक बार फिर से वह पेड़ लहरा उठा क्युकी उस पेड़ की जड़े बची रह गई थी।

दूसरी बार उगा यह पेड़ लगभग 8 सौ साल तक सही सलामत रहा इसी वृक्ष के नीचे खड़े होकर सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को बोधि वृक्ष की टहनियां देकर श्री लंका बौध धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए भेज दिया था।

ये लोग वहां जाकर अनुराधापुराम नामक एक स्थान पर उन टहनियों को रोपित कर दिया था जिससे वहां एक बोधि वृक्ष की स्थापना हुई वह वृक्ष आज भी वहां मौजूद है

दूसरी बार

एक बार फिर से इस वृक्ष पर विपत्ति आई, जब बंगाल के राजा शशांक ने बोधि वृक्ष को नष्ट करने के लिए इसमे आग लगवा दी थी। ताकी यह‍ वृक्ष दोबारा न उग सके।

लेकिन उनका भी यह प्रयास विफल हो गया क्युकी आग लगने के बाद भी वृक्ष की जड़े पूरी तरह से नष्ट नही हुई थी। कुछ साल बाद इन्ही जड़ो की मदद से तीसरी पीढ़ी का वृक्ष तैयार हो गया।

जो लगभग 1250 साल तक रहा

तीसरी बार

साल 1876 में भारी प्रकृतिक आपदा आपदा मे बोधि वृक्ष नष्ट हो गया था। इस घटना से बौध अनुयायी बहुत निराश थे कहा जाता है कि अंग्रजो के शासन के दौरान अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरम से उस बोधि वृक्ष की शाखा मंगवाई जिसे सम्राट अशोक के बच्चो के द्वारा वहा लगाया गया था।

कनिंघम ने उस बोधि वृक्ष की शाखाओं को बोध गया मे स्थापित कराया  कनिंघम को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का जनक माना जाता है

डीएनए टेस्ट

साल 2007 में इस वृक्ष और सम्राट अशोक के बच्चो द्वारा लगाए गए वृक्ष का डीएनए टेस्ट किया गया इस टेस्ट में यहा बात साबित हुई कि यह वृक्ष उसी वृक्ष के मूल से निकाला है जिसके नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था इस तहर वो वृक्ष आज भी बोध वृक्ष गया मे स्थित है।

सुरक्षा

किसी पेड़ के लिए इतनी बड़ी सुरक्षा कभी नही देखी होगी इस पेड़ की सुरक्षा में दिन रात 530 जवान लगे रहते यहा का पहरा इतना कड़ा होता है कि इस पवित्र वृक्ष के आस पास जवानों की मंजूरी के बगैर यहा परिंदा भी पर नही मार सकता।

मंदिर और बोध वृक्ष की सुरक्षा के लिए बिहार मिलिट्री पुलिस की चार कंपनी को लगाया गया है एक कंपनी में 120 जवान तैनात होते हैं इसके अलावा जिला पुलिस बल के 50 जवान तैनात रहते है।

सुरक्षा की मॉनिटरिंग करने के लिए एक डीएसपी और एक इंस्पेक्टर लेबल के अधिकारी को प्रभारी बनाया गया है इसके साथ ही एक दर्जन सहायक पदाधिकारी तैनात किए गए हैं।

शायद यहा भारत का पहला ऐसा वृक्ष है जिसकी सुरक्षा इतनी बड़ी और कड़ी है इस वृक्ष की टहनियां इतनी विशाल है कि इसे लोहे के 13 पिलर के सहारे खड़ा किया गया है

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धन्यबाद 

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