सात पूँछों वाला चूहा
एक था चूहा। उस चूहे की सात पूँछें थीं। सब उसे चिढ़ाते- सात पूँछ का चूहा, सात पूँछ का चूहा। सत्ता चूहा! तंग आकर चूहा गया नाई के पास। उसने नाई से कहा- ऐ नाई, मेरी एक पूँछ काट दो।
नाई ने एक पूँछ काट दी। अब चूहे के पास बची सिर्फ छह पूँछे। अगले दिन जैसे ही चूहा बिल से बाहर निकला तो सब उसे चिढ़ाने लगे- छह पूँछ का चूहा, छह पूँछ का चूहा। छक्का चूहा!”
चूहा फिर से तंग आ गया। वह गया नाई के पास। उसने कहा- ऐ नाई, मेरी एक और पूँछ काट दो।नाई ने एक पूँछ और काट दी। अब उसके पास बचीं पाँच पूँछ। पर, अगले दिन सब उसे फिर से चिढ़ाने लगे- पाँच पूँछ का चूहा, पाँच पूँछ का चूहा। पंजू चूहा!
चूहे ने नाई से एक पूँछ और कटवा ली। अब उसके पास बच सिर्फ चार पूँछ। पर सब उसे चिढ़ाते-चौका चूहा! नाई के पास जाकर चूहे ने फिर एक पूँछ कटवाई। अब उसके पास बचीं तीन पूँछें। फिर भी सब चिढ़ाते-तिन्नू चूहा।
उसने नाई के पास पहुँचकर एक पूँछ और कटवा ली। अब उसके पास बच दो ही पूँछें। पर सब उसे चिढ़ाते- दो पूँछ का चूहा, दो पूँछ का चूहा दुक्का चूहा! चूहा परेशान होकर गया नाई के पास। नाई ने एक पूँछ और काट दी। अब वह एक पूँछ का चूहा हो गया। अब भी सब उसे चिढ़ाते- एक पूँछ का चूहा, एक पूँछ का चूहा। इक्का चूहा!
चूहा गया नाई के पास। नाई ने आखिरी पूँछ भी काट दी। अब पूँछ ही नहीं बची। लेकिन फिर भी सब चूहे को चिढ़ाते बिना पूँछ का चूहा, बिना पूँछ का चूहा।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है ?
हमने सीखा- हमें इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं, क्या कहते “हैं। लोगों को खुश करने के चक्कर में हम अपनी विशेषताएँ खो देते हैं।