Bodh katha | मोटी मछली की खोज में | बोध कथा
मोटी मछली की खोज में
राजा एक ऐसे विनम्र आदमी की खोज में था, जिसे मंत्री बनाया जा सके। उसने अपने दूत भेजे और राज्य भर में से अति विनम्र आदमी खोज लाने को कहा। दूत एक गाँव में ठहरे और रात्रि में विश्राम किया। उन्होंने देखा इस व्यक्ति के पास छह मंजिला हवेली है। नौकर-चाकर, वाहन इत्यादि सब कुछ हैं, फिर भी फटे कपड़े पहने फिरता है और कंधे पर मछली पकड़ने वाला जाल भी लिए घूमता है। उन्होंने पूछा, “भाई, अब काहे की कमी है? ये जाल क्यों लटकाए घूमते हो?”
उस व्यक्ति ने कहा, “यों ही। मैं धनवान अवश्य बन गया हूँ किंतु अपने पुराने समय को न भूल जाऊँ, याद बनी रहे, इसलिए जाल होगा? इसे तो अपने धन पर भी अहंकार नहीं है। इतनी बड़ी हवेली है, फिर भी फटा कोट पहनने में भी नहीं झिझकता। उसे. लटकाए रहता हूँ।” सिपाहियों ने सोचा इस व्यक्ति से अधिक विनम्र और कौन चुन लिया गया और राजा के पास ले जाकर प्रस्तुत किया। राजा ने सब कुछ सुनने के बाद उसकी मंत्री पद पर नियुक्ति कर दी।
जिस दिन से वह मंत्री बना कि उसने जाल एक तरफ फेंक दिया और फटे-पुराने वस्त्र उतारकर कीमती पोशाक पहनकर राजभवन पहुँचा। तब लोगों ने पूछा- “अरे! तुम्हारा जाल कहाँ गया जिसे तुम अहंकार गलाने, सादगी बताने को लटकाए फिरते थे?” वह व्यक्ति बोला- ” अब जब मोटी मछली ही फँस गई, तो अब जाल को कब तक लटकाए फिम्हें? प्रभुता पा लेने, काम बन जाने के उपरांत पुरानी लीक पर फिर कितने लोग चलते हैं!