परिभाषा
आकाशगंगा के घूर्णन से ब्रह्मांड में विद्यमान गैसों का मेघ प्रभावित होता है तथा परस्पर गुरुत्वाकर्षण के कारण उनके केन्द्र में नाभिकीय संलयन शुरू होता है व हाइड्रोजन के हीलियम में बदलने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस अवस्था में यह तारा बन जाता है।
केन्द्र का हाइड्रोजन समाप्त होने के कारण तारे का केन्द्रीय भाग संकुचित व गर्म हो जाता है, किन्तु इसके बाह्य परत में हाइड्रोजन का हीलियम में बदलना जारी रहता है।
धीरे-धीरे तारा ठंडा होकर लाल रंग का दिखाई देने लगता है, जिसे रक्त दानव (Red Giants) कहा जाता है।
इसके बाद हीलियम कार्बन में और कार्बन भारी पदार्थों जैसे- लोहा में परिवर्तित होने लगता है। इसके फलस्वरूप तारे में तीव्र – विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा विस्फोट (Supernova) – कहते हैं।
यदि तारों का द्रव्यमान 1.4 Ms (जहाँ Ms सूर्य का द्रव्यमान है) से कम होता है तो वह अपनी नाभिकीय ऊर्जा को खोकर श्वेत वामन (White Dwarf) में बदल जाता है। जिसे जीवाश्म तारा (Fossil Star) भी कहा जाता है।
श्वेत वामन ठंडा होकर काला वामन (Black Dwarf) में परिवर्तित हो जाता है। 1.4 Ms को चन्द्रशेखर सीमा (Chandrashekhar limit) कहते हैं।
इससे अधिक द्रव्यमान होने पर, मुक्त घूमते इलेक्ट्रॉन अत्यधिक वेग पाकर नाभिक को छोड़कर बाहर चले जाते हैं तथा न्यूट्रॉन बचे रह जाते हैं। इस अवस्था को न्यूट्रॉन तारा या पल्सर कहते हैं।
न्यूट्रॉन तारा भी असीमित समय तक सिकुड़ता चला जाता है अर्थात् न्यूट्रॉन तारे में अत्यधिक परिमाण में द्रव्यमान अंततः एक ही बिन्दु पर संकेन्द्रित हो जाता है। ऐसे असीमित घनत्व के द्रव्य युक्त पिंड को कृष्ण छिद्र या ब्लैकहोल कहते हैं। इस ब्लैकहोल से किसी भी द्रव्य, यहाँ तक कि प्रकाश का पलायन भी नहीं हो सकता।
इसीलिए ब्लैकहोल को देखा नहीं जा सकता।
ब्लैकहोल की संकल्पना को प्रतिपादित करने का श्रेय ‘जॉन व्हीलर’ को दिया जाता है। रॉग ब्लैकहोल दो या अधिक ब्लैकहोलों का समूह है। क्वेसर एक चमकीला खगोलीय पिंड है, जो अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित करता है। नासा ने अब तक पहचाने गए सबसे पुराने तारे की खोज की है, जिसे ‘केप्लर 444’ नाम दिया गया है।
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